क्या आपने कभी महसूस किया है कि सुबह होते ही आंखें खुद-ब-खुद खुल जाती हैं, भूख लगने लगती है, और जैसे-जैसे रात ढलती है वैसे ही नींद आने लगती है? और अगर हम इस आंतरिक अनुभूति के विपरीत कोई कार्य करते हैं — जैसे देर रात तक जागना या बिना भूख के खाना — तो शरीर थका हुआ और मन बेचैन-सा लगता है। क्यों होता है ऐसा?

ये कोई संयोग नहीं है, बल्कि हमारे शरीर के भीतर चल रही एक सटीक और प्राकृतिक घड़ी — जिसे ‘Circadian Rhythm’ या ‘Biological Clock’ कहते हैं — की वजह से होता है। यह घड़ी बिना अलार्म के ही शरीर को बताती है कि कब सोना है, कब उठना है, कब भूख लगनी चाहिए, और कब शरीर को आराम या ऊर्जा चाहिए।
ये वही जैविक घड़ी है जो न सिर्फ इंसानों में, बल्कि पक्षियों, जानवरों, पेड़ों और यहां तक कि सूक्ष्म जीवों में भी पाई जाती है। लेकिन अफ़सोस, आज की असंतुलित दिनचर्या, अनियमित नींद, कृत्रिम रोशनी और डिजिटल लाइफस्टाइल ने हमें हमारी इसी प्राकृतिक लय से दूर कर दिया है, जिसका प्रभाव हमारी सेहत, मूड, पाचन, हार्मोन, और इम्युनिटी तक पर पड़ रहा है।
1. जैविक घड़ी (Circadian Rhythm) क्या है?
Circadian Rhythm (सरकेडियन रिदम) एक प्राकृतिक, आंतरिक घड़ी है जो हमारे शरीर की जैविक प्रक्रियाओं को 24 घंटे के चक्र में नियंत्रित करती है। यह घड़ी हमारे नींद-जागने के समय, हार्मोन के स्तर, शरीर के तापमान, पाचन, और मानसिक सतर्कता को नियमित रूप से नियंत्रित करती है।
यह घड़ी हमारे मस्तिष्क के Suprachiasmatic Nucleus (SCN) नामक हिस्से में स्थित होती है, जो कि प्रकाश और अंधकार के संकेतों के आधार पर कार्य करती है। यही कारण है कि जैसे ही सूरज उगता है, हमारा शरीर सतर्कता की ओर बढ़ता है, और सूर्यास्त के बाद शरीर विश्राम की तैयारी करता है।

2. यह जैविक घड़ी कैसे काम करती है?
जब हमारी आंखों के माध्यम से सूर्य का प्रकाश हमारे मस्तिष्क तक पहुंचता है, तो SCN एक्टिव होता है और यह पिट्यूटरी ग्लैंड व अन्य हार्मोनल सिस्टम को निर्देश देता है:
- सुबह: Cortisol नामक हार्मोन रिलीज होता है जो हमें जागने और एक्टिव होने में मदद करता है।
- दोपहर: शरीर सबसे अधिक सतर्क होता है, digestion peak पर होता है।
- शाम: Melatonin हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है, जो नींद की तैयारी करता है।
- रात: शरीर रिपेयर मोड में चला जाता है, इम्यून सिस्टम एक्टिव होता है।
यह पूरा चक्र प्रतिदिन दोहराया जाता है — जब तक हम इसे अपनी lifestyle से डिस्टर्ब नहीं करते।
3. क्या केवल इंसानों में ही होता है Circadian Rhythm (जैविक घड़ी)?
बिलकुल नहीं। यह लय प्रकृति के हर जीव में पाई जाती है। आइए कुछ उदाहरण देखें:
- पक्षी: सुबह होते ही चहचहाना शुरू कर देते हैं और सूर्यास्त के बाद अपने घोंसलों में लौट जाते हैं।
- फूल: सूरज की दिशा में मुड़ते हैं और रात में मुरझा जाते हैं।
- जानवर: कई जानवर रात को ही शिकार करते हैं (nocturnal rhythm)।
- पेड़-पौधे: रात को ऑक्सीजन लेना और दिन में छोड़ना — यह भी एक जैविक घड़ी का हिस्सा है।
यह हमें बताता है कि पूरी सृष्टि एक संगीत की तरह लयबद्ध चल रही है। लेकिन जब हम इस लय के विपरीत चलते हैं, तो विकृति और रोग जन्म लेते हैं।

4. हमारी आधुनिक जीवनशैली और Circadian Rhythm का टकराव
आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में हमारी नींद का समय अनियमित है, खाना कभी भी खा लेते हैं, रात में मोबाइल और लैपटॉप की तेज़ ब्लू लाइट में जागते रहते हैं। इसका प्रभाव हमारी आंतरिक घड़ी पर पड़ता है।
इसके नुकसान:
- नींद की कमी और थकान
- मोटापा बढ़ना
- डिप्रेशन और anxiety
- डायबिटीज़ और हाइपरटेंशन
- पाचन संबंधी समस्याएं
- हॉर्मोनल असंतुलन
यह सारे रोग कहीं न कहीं हमारी Circadian Rhythm से कटने की कीमत हैं।
5. क्यों जरूरी है जैविक घड़ी के अनुसार जीना?
(1) नींद और मानसिक स्वास्थ्य
जब हम अपनी जैविक घड़ी के अनुसार सोते हैं (रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक), तो शरीर को पर्याप्त REM (Rapid Eye Movement) और Deep Sleep मिलती है, जो मानसिक संतुलन, याददाश्त और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
(2) पाचन और मेटाबॉलिज्म
सुबह 6 से 10 बजे तक पाचन शक्ति मजबूत होती है। लेकिन रात में भारी खाना खाने से शरीर उस भोजन को ठीक से पचा नहीं पाता और मोटापा, एसिडिटी जैसी समस्याएं होती हैं।
(3) हार्मोन बैलेंसिंग
जैसे ही सूरज ढलता है, शरीर को आराम और रिपेयर की आवश्यकता होती है। यदि हम जागते रहते हैं, तो melatonin (एक प्रकार का हार्मोन, जिसकी वजह से नींद आती है) release नहीं हो पाता, जिससे नींद, तनाव और हॉर्मोनल गड़बड़ियां होती हैं।
(4) इम्यून सिस्टम
रात में शरीर अपनी कोशिकाओं की मरम्मत करता है। अगर हम इस समय में नींद नहीं लेते, तो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
6. Circadian Rhythm (जैविक घड़ी) को फिर से कैसे Restore करें?
(1) सूरज के साथ उठिए और सोइए
सुबह 5-6 बजे उठकर सूर्य की पहली रोशनी लें। रात 9:30-10 बजे तक सोने की कोशिश करें।
(2) स्क्रीन टाइम कम करें
रात में मोबाइल, लैपटॉप और टीवी की नीली रोशनी melatonin को suppress करती है, जिससे नींद नहीं आती।
(3) खाने का समय नियमित रखें
सुबह heavy breakfast, दोपहर balanced lunch और रात को हल्का भोजन — यह आदर्श तरीका है।
(4) रोज़ाना व्यायाम करें (सुबह या शाम)
व्यायाम शरीर की घड़ी को रीसेट करने में मदद करता है।
(5) Mindfulness और मेडिटेशन
सुबह के समय थोड़ी देर मेडिटेशन करने से मस्तिष्क शांत होता है और प्राकृतिक लय को महसूस करता है।
7. आयुर्वेद और Circadian Rhythm (जैविक घड़ी)
आयुर्वेद भी दिनचर्या को तीन भागों में बांटता है — वात काल, पित्त काल और कफ काल। यह साइंस भी इस बात को हज़ारों साल पहले से मानता आया है कि दिन का हर समय एक विशेष कार्य के लिए उपयुक्त होता है।
उदाहरण:
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त (4-6 AM) ध्यान-योग के लिए
- दोपहर का समय digestion के लिए
- रात विश्राम और पुनर्निर्माण के लिए
8. निष्कर्ष: प्रकृति के साथ चलें, तो जीवन सरल हो जाता है
हमारे शरीर की आंतरिक घड़ी हमें हर दिन संकेत देती है — कब खाना है, कब सोना है, कब काम करना है, कब रुकना है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली ने हमें इन प्राकृतिक संकेतों से अनजान कर दिया है।
अगर हम दोबारा प्रकृति के साथ तालमेल बनाएं — सूरज के साथ उठें, सही समय पर भोजन करें, नींद को प्राथमिकता दें, और डिजिटल डिस्ट्रैक्शन से दूरी बनाएं — तो हम न सिर्फ बीमारी से बच सकते हैं, बल्कि मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त जीवन जी सकते हैं।
“अपनी बॉडी क्लॉक को फिर से समझें, और अपने जीवन में स्वास्थ्य, ऊर्जा और संतुलन लाएं। हमारी कम्युनिटी True Fit Disclosure को ज्वाइन करें और खुद अनुभव करें कि कैसे छोटी सी बदलाव आपकी सेहत में बड़ा फर्क डाल सकते हैं।
व्हाट्सप्प के आइकॉन को क्लिक करके ज्वाइन करे !